” दीप जलता रहे ” !!
दीप जलता रहे !!
फैली चंहु और ,
गंध मादक सी!
श्रृंगारित तन मन ,
प्यास चातक सी !
अलसाया तम है ,
हाथ मलता रहे !!
चूड़ी करे खनक ,
जगन पलों की !
महके हैं साँसें ,
ठगी चंदन की !
नशीली है छुअन ,
साथ चलता रहे !!
भीगा सा मौसम ,
ऋतु है सुहानी !
आओ अधरों पर ,
लिख दें कहानी !
जगन जगी है यों ,
मन मचलता रहे !!
रातों के साये ,
लगे ठहरे से !
हमको घाव मिले ,
कभी गहरे से !
खोले परत समय ,
मन बहलता रहे !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )