दीपोत्सव
कमला बिमला सरला सब कामकाजी महिला है, उनकी निरीक्षक कलावती ने शनिवार को एक एक सरसों के तेल की बोतल वा दीपक भेंट किया,
कमला, बिमला, सरला को सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिल रही थी,
उनके मन में संशय पैदा हो गया,
क्योंकि वे तो घर में शनिवार के दिन न तो सरसों का तेल , न ही नमक तक लेकर आती है.
यहाँ तक संध्या काल में भी ये सामान खरीदा करती थी,
एकाध बार हिम्मत भी करके देखी,
तो किसी न किसी घटना से सह-सामंजस्य बिठा लेती थी,
इन्होंने ऐसा समय भी देखा था,
आंच एक दूसरे के घर लेकर चूल्हे जलाये हैं
दियासलाई तक न रहती थी घर में.
इन सब चीजों को विराम देते हुए,
उन्होंने दीपोत्सव मनाया,
दीपोत्सव एक धार्मिक उत्सव,
कब आरंभ हुआ होगा.
इसे आजतक क्यों ढोहे जा रहा है.
जब देश अशिक्षा, बेरोजगार, संपदा, संपत्ति से जूझ रहा है.
खुद का उत्पादन कुछ है नहीं,
सभी चीजें, विदेशी कंपनियों के हिसाब से ढाला जा रहा है.
अगली समस्या सुबह की रसोई के तड़के की परेशानी खड़ी हो गई.
खैर,
वही चटनी रोटी छाछ प्याज आलू टमाटर से पेट भरने के सिलसिले चलते रहे,
जलाने का तेल
खाने का तेल
निकाल रहा हो जैसे तेल.
पेट भरने के लिए, जो कामकाजी महिलाऐं
पेट भरे या दीपोत्सव बनाए.
मंहगाई का रसोई पर अतिरिक्त भार कमला, बिमला, सरला को व्यथित किए हुए है,
वोट
चुनाव
पार्टियां
विचारधारा से ज्यादा.
धर्म को सबसे बड़ा खतरा पैदा हो चुका है
लोग सुबह उठते ही, पेट्रोल,डीजल,गैस,रोजगार,आटे, दाल की चिंता में डूब जाते हैं, वे धर्म पर ध्यान ही नहीं दे रहे है.
वो आदमी महत्वपूर्ण है, जो उन्हें सहयोग करता है. वो कहे, वही होता है.
बूथ को मजबूत करने का सिलसिला चल रहा.
दीपोत्सव खुद खूब शर्मिंदा है.
जीवन मूल्यों के स्तर गिरने लगे हैं,
वोट बिकने लगे हैं.
शराब बांटकर,, शराबी बना रहे है.
धर्म के नाम पर,,, धार्मिक रंग जमा रहे हैं
बोलो जय श्रीराम
जैसे चिढा रहे हैं.
वंदेमातरम को वंदन नहीं.
थोप रहे है.
नंगा के धोवै, के निचोडें.
लोग इस क्षेत्र में शुद्ध मुनाफे खोज कर
पैसा शेयर मार्केट की तरह लगा रहे हैं.