दिसंबर है जुदाई का मौसम और जुदाई किसी को पसंद नहीं
दिसंबर है जुदाई का मौसम और जुदाई किसी को पसंद नहीं
जाते साल में कुछ अपने छूट गए
हम तो नए साल में चले जाएंगे पर जिनका हाथ छुटा वो सिर्फ यादों में बसे रहेंगे
कुछ कदम कम होंगे जो नए साल का स्वागत करेंगे
फिर भी किसी नए का स्वागत तो जरूरी है
क्योंकि यही हमारी पहचान है और हमारा कर्तव्य भी
कुछ खोया तो उम्मीद है इस नए साल बहुत कुछ पा भी लेंगे
दिसंबर का जाना और जनवरी का आना जैसे तय है वैसे ही दुःख के बाद सुख का आना तय है ।।
मिलन और बिछोह जीवन चक्र है
रात के बाद दिन आएगा ही
वैसे ही कुछ भी एक सा नहीं रहता
जिस तरह पृथ्वी घूमती रहती है
वैसे ही हमारे सुख दुख भी इसी ब्रह्माण्ड में गोचर करते रहते है
बार बार पलट कर हमारे पास आ ही जाते है ।।
जो जा रहा है उसे भूलना नहीं और जो आ रहा है उसके लिए पागल भी मत होना
इस आने और जाने के बीच का संतुलन ही जिंदगी है
थोड़ी आशा
थोड़ी निराशा
जिंदगी की
यही परिभाषा