दिशा
सूर्य उदित होता प्राची में
और अस्त पश्चिम में होता।
नित्य चन्द्र भी सूर्य के पथ का
कर रहा अनुगमन युग-युग से ।
नदियाँ भी चुन एक दिशा ही
कल-कल करती बहती है ।
पवन देव भी तय कर रखते
कब किस दिशा से बहना है ।
इन सबकी इस लय से ही
सृष्टि पर जीवन सम्भव है।
थोड़ी सी भी जो लय बिगड़ी
तो होता बड़ा उपद्रव है ।
हमें प्राप्त हैं दसों दिशाएं
करने को स्व अनुसंधान ।
सबमें एक लय है जीवन की
सबमें भरे अनगिन वरदान ।
स्व सामर्थ्य लखो पहले तुम
फिर कोई दिशा चुनो दृढ़ता से ।
भटको नहीं तुम दसों दिशा
एक ही साधो तत्परता से ।
सभी दिशा दिक्पाल सुशोभित
देने को अतिशय वरदान ।
तुम पर ही निर्भर तुम कितना
आगे बढ़ पाते उत्थान ।