दिशाहीन
अर्थहीन ,मंतव्यहीन ,गंतव्यहीन दिशा की ओर
बढ़ता जा रहा हूं ,
मैं अपने ही अंतस्थ मृगतृष्णा के छलावे में
खोता जा रहा हूं ,
वर्तमान एक दिवास्वप्न की भांति प्रतीत होने
लगा है,
अतीत विस्मृत ,भविष्य अंधकारमय अवधारणा बनने लगा है,
विवेक शून्य मस्तिष्क सार्थक चिंतन के अभाव में किंकर्तव्यविमूढ़ बनकर रह गया है ,
नियति के हाथों जीवन निरर्थक त्रिशंकु
होकर रह गया है।