दिव्यांग मित्रों के प्रति कुछ मुक्तक …
पांव यदि है एक तो शत पर्वतों को लांघिये.
एक है यदि हाथ तो दस के बराबर मानिए.
आँख भी है एक अथवा हैं नहीं दोनों नयन,
हर परिस्थिति से लड़ेगें, मित्र मन में ठानिये.
आप वाणीसुत समर्पित कोकिला कविता जमी.
कर श्रवण हर्षित द्रवित मन दूर आँखों की नमी.
यदि रहे संकल्प दृढ़, होती परिस्थिति पर विजय,
तीव्र यदि मष्तिष्क है तो आपमें कैसी कमी?
मन बने फौलाद सा कठिनाइयों से मत डरें.
आप हों अपना सहारा, नित्य यह सोचें करें.
सैर करिए अब गगन में आत्मबल के साथ में,
जन्म होगा यह सफल बस जिन्दगी में रँग भरें.
‘विष्णु’ जी का शौर्य अतुलित ‘लक्ष्मी’ साकार हैं,
‘व्यास’ ‘बेखुद’ ‘बेअदब’ ‘मृदु’ जिन्दगी का सार हैं,
‘बिंदु’ जी हैं सिन्धु सम शुचि सूर्य से भाई ‘मनोज’
सीखिए ‘आलोक’ से जो ज्ञान का भण्डार हैं.
मूर्तियाँ जिसने बनाईं काम उत्तम था किया.
रह गयी यद्यपि कमी पर स्नेह दे दुःख ले लिया.
है सहज विकलांगता इसको पराजित मिल करें,
नित्य ईश्वर को नमन जो जन्म मानव का दिया.
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–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’