दिव्यमाला अंक 38
गतांक से आगे ————
कालिय प्रकरण
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चला छोड़ मैं जाऊंगा पर, जाउँ तो मैं कहां जाऊँ।
गरुड़ मेरा रिपु प्राणो का,उससे ही मैं भय खाऊँ।
यहाँ शाप वश आता नही है, इससे ही मैं सकुचाऊँ।
अगर छोड़ मैं गया इधर से ,डर है फिर जी न पाऊँ।
सुन कृष्णा ने उसकी बातें ,किया समाधान …..?
हे पूर्ण कला के अवतारी तेरा यशगान…कहाँ सम्भव।। 75
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दमन द्वीप तुम जाओ वापस ,ओर मजे से तुम रहना।
गरुड़ वहाँ पर आए तो भी , उससे तुम अब मत डरना।
चरण चिन्ह दिखलाना फन पर ,नमन झुका कर सिर करना।
जाओ भक्ति भजन कर लो अब, तज मद सारा फिर फिरना।
इस तरह कालिय का किसना ने ,किया कल्याण…..? कब सम्भव…?
हे पूर्ण कला के मधुसूदन, तेरा गुणगान कहाँ सम्भव……..?…..76
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क्रमशः—–( परन्तु नवरातो के बाद प्रस्तुत ,फिलहाल यह अंतिम किश्त ,एवम माँ दुर्गा की स्तुति में आज प्रथम किश्त शुरू अलग से)
कलम घिसाई
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मधुसूदन गौतम
9414764891