दिव्यमाला अंक 35
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कान्हा को जब ज्ञात हुआ यह ,तो कुछ करने की ठानी।
अक्ल लगाई अपनी भगवन, कैसे हो निर्मल पानी।
ग्वाल मंडली संग में लेकर, जमुना तट पर मनमानी।
खेल- खेल में गेंद फेंक दी,काली दह से वो लानी।
लीला जाने कब ग्वाले ,जाने भगवान…कहाँ सम्भव..?
हे पूर्ण कला के अवतारी .तेरा गुणगान….69
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गेंद गई जब गहरे पानी , ग्वालों को गुस्सा आया।
भले बुरे फिर बोल बोलकर , कान्हा सबने उकसाया।
अगले ही पल चढ़े कदम पर,अपना सारा जोर लगाया।
छिनभर में ही छप छप करते ,कान्हा को सबने पाया।
गेंद बहाना लेकर देखे ,कहँ शैतान….. कहाँ सम्भव??
हे पूर्ण कला के अवतारी ..तेरा यशगान कहाँ सम्भव ?…..70
कलम घिसाई
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