दिव्यमाला (अंक 30)
गतांक से आगे……
दिव्य कृष्ण लीला ….अंक 30
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बकासुर प्रकरण
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बकासुर का मरण सुना जब,कांप कंस की काया गई।
अब किसको भेजूँ वृंदावन,खड़ी सामने दाया नई।
जोर लगाया सब योद्धा पर, नाम जुबाँ को भाया नही।
तब स्मृत हो आया अघासुर, बस यही जँच पाया सही।
मिलते अब तो चले कंस जी ,जम कर श्रीमान….कहाँ सम्भव?
हे पूर्ण कला के अवतारी. तेरा ..यशगान.. कहाँ सम्भव .? 59
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अघासुर दैत्य भारी भयंकर ,कंस जानता यह तो।
भेष बदलने में माहिर था, इसे मानता था वह तो।
यही सोचकर चला मनाने, सोया पड़ा अघासुर तो।
उसे जगाकर बोला मन की,समझाया उसको सब तो।
फूँके अघासुर के कंस ने ,आखिर कान…कहाँ सम्भव,
हे पूर्ण कला के अवतारी…..60
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क्रमशः अगले अंक में
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कलम घिसाई
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