दिव्यमाला। अंक 37
गतांक से आगे….
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ग्वालों ने देखा कान्हा को , नाग फनो पर नाच रहा।
मगर देखकर भय से सबका ,तन अरु हिरदा कांप रहा।
पर कान्हा तो ता धिन ता धिन, हर इक फन को नाप रहा।
कालिया फन पर नर्तन करते ,अब तो कालिय हांफ रहा।
मद का मर्दन करते कान्हा, आधी जान…कहाँ सम्भव?
हे पूर्ण कला के अवतारी तेरा यशगान…कहाँ सम्भव? 73
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देख दशा फिर प्राणनाथ की , पत्नी सब दौड़ी आई।
क्षमा करो हे जग के स्वामी ,रहम करो कृष्ण कन्हाई।
प्राण छोड़ दो इनके स्वामी ,आँखे सबकी भर आईं।
विनती सुनकर करुणाकर के , मन मे भर करुणा आई।
बोले एक शर्त है सुन लो ,छोड़ो स्थान….. कहाँ सम्भव??
हे पूर्ण कला के अवतारी तेरा यशगान कहाँ सम्भव..? 74
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क्रमशः–(पुस्तक दिव्यमाला से)
कलम घिसाई
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