दिवाली
पग-पग आज दिवाली है
हर ड्योढ़ी पर कलश सजे हैं
द्वार-द्वार नव दीप जले हैं
उतर गया है चाँद धरा पर
यह रात बड़ी मतवाली है ।
पग-पग आज दिवाली है
नाच रही है राधा बनकर
किरण बसंती परिधानों में
बाँट रही है पूजा-घंटी
पीयूष प्रसादी कानों में
सुरभित करता फिरता अगरू
घर-मंदिर का कोना-कोना
भरता कितना प्रेम प्राण में
आँगन का यों चंदन होना
कहीं फुहारें फुलझड़ियों की
कहीं कतारें हैं लड़ियों की
सोना ही सोना कण-कण में
हर एक दिशा उजियाली है ।
पग-पग आज दिवाली है ।
दमक रहा हर मुखड़ा जैसे
गले लगा हो निज सपनों के
हर्षित है यों श्वास वंशिका
ज्यों बिछड़ मिली हो अपनों से
कदम टिकें क्यों अभिलाषा के
हाँ आज खुला आकाश मिला
कदम-कदम आलोकी साये
औ ठौर- ठौर उल्लास मिला
कंठ-कंठ में राग जगा है
भजन भाव से मुखर दिशा है
मंगल ही मंगल धरती पर
हर कर पूजा की थाली है ।
पग-पग आज दिवाली है ।
लेकिन कुछ ऐसे भी पांखी
हैं दूर बहुत जो दीपों से
देकर जग को मोती सुंदर
रह जाएँ तट जो सीपों से
आओ उनका नीड़ सजाएँ
अपने घर के दीये धरकर
मधुबन करदें जीवन उनका
पथ के काँटे हाथों चुनकर
आज किसी का भाग्य न रूठे
आज किसी का स्वप्न न टूटे
मिले हँसी हर एक अधर को
तो समझूँ यार दिवाली है ।
पग-पग आज दिवाली है ।
अशोक दीप
जयपुर
8278697171