दिवाली व होली में वार्तालाप
होली बोली दिवाली से,त्योहारों में हम ही जलते है |
मुझ में लकड़ियाँ,तेरे में मिट्टी वाले दीपक जलते है ||
मै पूर्णिमा को, तुम अमाश्या को मनाई जाती हो |
मै ग्रीष्म का,तुम शरद ऋतु का स्वागत करती हो ||
तेरे समय में,फुलझड़ियाँ,पटाखे छोड़े जाते है |
मेरे समय में,रंग बिरंगे गुब्बारे फोड़े जाते है ||
दिवाली में गाल लाली से ,होली में रंगो से रंगे जाते हैं |
दोनों ही त्योहारों में,गोरी के ही लाल गाल रंगे जाते है ||
मुझ में भंग घुटती है,तुझ में सबकी जेबे लूटती है |
मुझ में अंगिया भीगती है,तुझ में मांगे सजती है ||
आर के रस्तोगी गुरुग्राम