दिल
दिल
अक्सर मेरी रातों की नींदें चुरा लिए जाता है कोई
गुलशन से जैसे बहारों को चुरा लिए जाता है कोई
बड़ा सम्हाल के रखा था दिल मैने अपना लेकिन
बड़ी नफ़ासत से दिल को चुरा लिए जाता है कोई
गुमान बहुत था कि दिल नही देंगे किसी को हम
प्यार की राह पर कदम कभी भी नहीं रखेंगे हम
तुमने जो प्यार से उस शाम पलटकर क्या देख लिया
बंधन में सात जन्मों के अब तो जैसे बंध गए हैं हम
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश