**दिल मे बसा कर क्या करते***
**दिल मे बसा कर क्या करते***
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तन-मन मे हर दम तुम बसते हो,
तुम्हें दिल में बसा कर क्या करते।
गुलाबों सा चेहरा निखरा-निखरा,
हम गुलाब खिला कर क्या करते।
मन मंदिर में मूर्त बन कर बैठे हो,
तुझे घर में बुला कर क्या करते।
नजरों मे छाई सूरत और सीरत,
यूँ आईना दिखा कर क्या करते।
हर राह तुम्हारी मेरी हुई मंजिल,
तुम्हें पास बुला कर क्या करते।
रग – रग् मे समाई लय धुन तेरी,
मधुर राग सुना कर क्या करते।
तेरे अंग संग रंग में हूँ मानसीरत,
फिर गुलाल उड़ा कर क्या करते।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैंथल)