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24 Dec 2024 · 1 min read

दिल में खिला ये जबसे मुहब्बत का फूल है

दिल में खिला ये जबसे मुहब्बत का फूल है
चुभता ही अब नहीं हमें कोई भी शूल है

तुम साथ हो तो है नहीं परवाह कुछ हमें
हर जुल्म इस जमाने का हमको कुबूल है

कैसे मिलेगा स्वाद उसे आम का कभी
जिसने सदा बोया यहाँ केवल बबूल है

इंसानियत तो खो गई है जाने अब कहाँ
लालच हुआ ईमान तो दौलत उसूल है

लेकर बड़ा सा रूप निकल जाती हाथ से
छोटी सी बात का कभी बनता जो तूल है

तुम जिद इसे कहो या हमारी अना कहो
हम मानते हैं वो जो हमारा उसूल है

अच्छा है कुछ कहें नहीं बस चुप ही हम रहें
मुँह लगना बेवकूफ़ के बिल्कुल फ़िज़ूल है

इसमें कसूर ख्वाहिशों का है तो क्या करें
इनकी वजह से हमसे ही होती ये भूल है

हमको दिखाती ‘अर्चना’ ये ख्वाब नित नए
पर झोंकती भी ज़िंदगी आँखों में धूल है

डॉ अर्चना गुप्ता
24.12.2024

Language: Hindi
54 Views
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