दिल में खिला ये जबसे मुहब्बत का फूल है
दिल में खिला ये जबसे मुहब्बत का फूल है
चुभता ही अब नहीं हमें कोई भी शूल है
तुम साथ हो तो है नहीं परवाह कुछ हमें
हर जुल्म इस जमाने का हमको कुबूल है
कैसे मिलेगा स्वाद उसे आम का कभी
जिसने सदा बोया यहाँ केवल बबूल है
इंसानियत तो खो गई है जाने अब कहाँ
लालच हुआ ईमान तो दौलत उसूल है
लेकर बड़ा सा रूप निकल जाती हाथ से
छोटी सी बात का कभी बनता जो तूल है
तुम जिद इसे कहो या हमारी अना कहो
हम मानते हैं वो जो हमारा उसूल है
अच्छा है कुछ कहें नहीं बस चुप ही हम रहें
मुँह लगना बेवकूफ़ के बिल्कुल फ़िज़ूल है
इसमें कसूर ख्वाहिशों का है तो क्या करें
इनकी वजह से हमसे ही होती ये भूल है
हमको दिखाती ‘अर्चना’ ये ख्वाब नित नए
पर झोंकती भी ज़िंदगी आँखों में धूल है
डॉ अर्चना गुप्ता
24.12.2024