दिल बहलाएँ हम
ग़ज़ल
खाली जाम से कब तक यूँ ही अपना दिल बहलाएंँ हम
ऐसे आलम में बतलाओ कैसे उठ कर जाएँ हम ।
कट जायेगा सारा रस्ता मंज़िल भी मिल जायेगी
आओ मिलकर ऐ हमराही प्यार का नगमा गाएँ हम ।
देखो मौसम ने बख़्शी है कैसी यह रंगीन फ़िज़ा
इसके आँचल में आकर अब ग़म को दूर भगाएंँ हम
पल में मीठी बात करे हैं पल में आँख तरेरे ये
देख के दुनिया वालों की इस रंगत से घबराएँ हम ।
मायूसी ही हाथ लगी है सुधा हमको बाजारों में
मँहगी है हर चीज़ यहाँ अब क्या त्यौहार मनाएँ हम ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी©®