दिल धड़क उठा
मुलाक़ात हुई अचानक, देख तुम्हें सन्न,
दिल धड़क उठा, जैसे बीता हुआ ग़ज़ल।
नज़रें मिलीं तो हुआ दिल में तूफ़ान,
लफ़्ज़ न निकले, बस रही दिल में तिशनगी की खान।
तुम्हें देख, दिल ने की बातें अदूरे,
यादें हुईं ताज़ा, पर ज़ुबां रह गईं मज़लूम।
अरमान जो दिल में थे, रह गए बेज़ुबान,
सामने हो तुम, पर जज़्बात रहे गुमनाम।
आँखों में बसा था, अनकहा ग़म,
मुस्कान में छुपा, वो रंज-ओ-ग़म।
तुम्हारे बिना जीना, था कितना सख़्त,
पर कह न सका, बस था ख़ामोशी का वक्त।
दिल कहता रहा, “क्यों जुदा हो गए?”
क्यों हसरतों के चमन, वीरान हो गए?”
तुम्हारी हंसी, वो लम्हे हसीन,
अब बीते दिनों की धुंधली यासीन।
लफ़्ज़ों का सहारा छूटा, जब तुमसे मिला,
दिल ने सब कहा, पर ज़ुबां थी घिला।
निगाहों की ज़ुबां, दिल का हाल सुनाए,
पर तुमने न सुना, बस नज़रें चुराए।
वक़्त ने सिखाया, जीना अकेले,
पर दिल की आवाज़, ना हो सके मक़्बूल।
तुम्हारे बिना, ज़िन्दगी रही अधूरी,
पर दिल की आवाज़, अब भी रही मजबूरी।
आख़िरकार, जुदाई की राह पकड़नी पड़ी,
लफ़्ज़ों से नहीं, निगाहों से बिछड़नी पड़ी।
दिल की आवाज़, कभी कह न सके,
मुलाक़ात हुई, पर कुछ भी बोल न सके