दिल की बात
बुरा कभी सोचा नहीं
सबके लिए अच्छा ही सोचता हूं मैं
देखता हूं किसी को उदास तो
उसके दुख में शरीक हो जाता हूं मैं
आज सादा किसी को पसंद नहीं
ये भी जानता हूं मैं
लेकिन इसके लिए सादगी छोड़ दूं
ये तो नहीं कर पाऊंगा मैं
जो चीज़ अच्छी लगती नहीं
उसे अच्छा कह न पाऊंगा मैं
झूठ बोलकर वो मिल भी जाए
फिर भी झूठ न बोल पाऊंगा मैं
नहीं बात करता ज़्यादा मैं कभी
बचपन से ऐसा ही हूं मैं
जाने क्यों भ्रांति फैलाई किसी ने
जान लो, घमंडी नहीं हूं मैं
दोस्ती आदमी देखकर करता हूं
उसकी हैसियत देखकर नहीं
बना लेता हूं दिल से अपना उसे
जो भा जाता है दिल को कहीं
जो कहता है कोई मुझसे
उसे ही सच मानता हूं मैं
क्योंकि साफ दिल है सभी का
आज भी यही मानता हूं मैं
किसी को धोखा देता नहीं
दूसरों से भी यही चाहता हूं मैं
करता है चालाकियां जो मुझसे
उससे मुंह मोड़ जाता हूं मैं
पढ़ लेता हूं चेहरा देखकर
लेकिन मैं किसी से कुछ कहता नहीं
बढ़ जाए दुर्भावना हद से अगर
फिर मैं किसी को छोड़ता नहीं।