दिल का भी क्या कसूर है
दिल का भी क्या कसूर है
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दिल का भी क्या कसूर है,
तन – मन छाया फितूर है।
मंजिल कितनी भी दूर हो,
हाजिर हर दम हुजूर है।
गम की रोटी कबूल है,
तपता जैसे तनूर है।
बातें बेशक फिजूल सी,
हाथों में ना खजूर है।
बिगड़ा बिखरा नसीब है,
साजन बैठा सुदूर है।
मनसीरत भी न हीर सी,
रांझा भी बेकसूर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)