दिया मौन का सखी जलाओगी कब तक
अपने दिल के घाव छिपाओगी कब तक
दिया मौन का सखी जलाओगी कब तक
बंजर है उनके भावों का खेत सखी
और अना की बिछी वहाँ पर रेत सखी
फसल उगाने वहाँ प्यार की तुम यूँ ही
अपने आँसूं रोज बहाओगी कब तक
दिया मौन का सखी जलाओगी कब तक
पत्थर सुन लो कभी न पिघला करते हैं
जज्बातों को कभी न समझा करते हैं
रहें बेअसर चाहें कोई हो मौसम
दिल में उनको तुम रख पाओगी कब तक
दिया मौन का सखी जलाओगी कब तक
दिल में ही अरमान तुम्हारे रोये हैं
अपनों को पाने में अपने खोये हैं
साँसों पर भी दाँव लगाकर बतलाओ
जीने का यूँ ढोंग रचाओगी कब तब
दिया मौन का सखी जलाओगी कब तक
डॉ अर्चना गुप्ता