दिन देखे नहीं, देखे नहीं रात
दिन देखे नहीं, देखे नहीं रात
नहीं सफलता, हर जगह मात
गर्मी तपती या बर्फीली सर्दी
हर मौसम में मिलती बेदर्दी
अस्थि-पिंजर वह कृशकाय
कितना है वह असहाय?
-आचार्य शीलक राम
दिन देखे नहीं, देखे नहीं रात
नहीं सफलता, हर जगह मात
गर्मी तपती या बर्फीली सर्दी
हर मौसम में मिलती बेदर्दी
अस्थि-पिंजर वह कृशकाय
कितना है वह असहाय?
-आचार्य शीलक राम