*दिनचर्या*
फजर से स्याह रात तक का
सफर हो आसान
इसलिए
रोज उठाती हूँ कलम
दोपहर का आराम
फिर शाम का वही
अफसाना
जिसे जीती हूँ मैं
अपने तरीके से
तब आतुर हो जाती हूँ
उसे शब्दों में बयां करने को
फिर तारों के नीचे बैठ
खोलती हूँ अपनी डायरी का
सफेद पन्ना जो
अमूमन
होता है खाली
और मैं अपनी व्यस्तता से
फारिक हो
उठाती हूँ कलम
उतार देती हूँ
दिल के हर्फ
इन पन्नों पर
बस यूँ ही चलती रहती है
मेरी दिनचर्या
संतोष सोनी ‘तोषी’
जोधपुर ( राज.)