दिग्पाल छन्द
दिग्पाल छन्द
221 2122 221 2122
परदेश में तुम्हारी माँ याद आ रहीं हैं।
साया उठा पिता का मैं पृथक हो गया हूँ।
सब शौक छोड़के मैं परदेश आ गया हूँ।
हालात यूँ हमारे लाचार हो गए हैं।
दिन रात अब बिताना दुश्वार हो गए हैं।
अब गांव की हमें यादें सता रहीं है।
परदेश में तुम्हारी माँ याद आ रहीं हैं।
देखा नहीं दिनों से अब नयन हैं तरसते।
माँ आँख से हमारी गम अश्क हैं बरसते।
है मन उदास मेरा लगता कहीं नहीं माँ।
कर याद आपको मैं होता बहुत दुखी माँ।
ये रुग्ण आँख मेरी कुछ तो बता रहीं हैं।
परदेश में तुम्हारी माँ याद आ रहीं हैं।
अभिनव मिश्र अदम्य