*दिखते हैं आज गुरू-घंटाल (गीत)*
दिखते हैं आज गुरू-घंटाल (गीत)
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गुरुओं से ज्यादा दिखते हैं आज गुरू-घंटाल
1
सभी दुकानें हैं जिन पर अध्यात्म बिक रहा पाया
इनके आकर्षण में धोखा सब वर्गों ने खाया
इनका बिजनेस रोज बढ़ रहा, होते मालामाल
2
एक हजार करोड़ी से कम, कोई गुरू न दिखते
इनके आश्रम-भव्य कमाई, इनकी कितनी लिखते
ईश्वर से मिलवाने की, पाखंडी इनकी चाल
3
अगर प्राप्त करना है ईश्वर, खुद के भीतर जाओ
मौन चुनो एकान्त ध्यान, अपना कुछ समय लगाओ
गुरुओं के चक्कर में ज्यादा, होगा खस्ताहाल
4
असली गुरू वही, कब जिसने सोना-चॉंदी चाही
जो अपने में मस्त बना, जो अन्तर्मुख का राही
जिसके आगे किसी ढोंग की, गलती तनिक न दाल
गुरुओं से ज्यादा दिखते हैं, आज गुरू-घंटाल
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रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451