दास
बैठे भूतल पर सदा,
तजि आसन की आस।
उदासीन को जगत में,
कौन बनावे दास।
बनते कभी न दास,
हृदय सुख- दुख से रीते।
पतझर या मधुमास,
एकसम उनके बीते।
पदच्युत खाये खार,
रहे खिसियाये ऐंठे।
देगा कौन उतार,
उन्हें जो भूतल बैठे।
संजय नारायण
बैठे भूतल पर सदा,
तजि आसन की आस।
उदासीन को जगत में,
कौन बनावे दास।
बनते कभी न दास,
हृदय सुख- दुख से रीते।
पतझर या मधुमास,
एकसम उनके बीते।
पदच्युत खाये खार,
रहे खिसियाये ऐंठे।
देगा कौन उतार,
उन्हें जो भूतल बैठे।
संजय नारायण