दार्शनिकों को चुनौती : कर्म अभी, तो उसका फल बाद में क्यों? (Challenge to philosophers: If the action is done now, then why its consequences later?)
खेती करता जैसे किसान।
वर्षों बाद यदि अन्न दे भगवान।।
खेती करने की आस कैसे जगे आगे।
ऐसे में कहेंगे सब में आग लगवा दे।।
अन्न, फल की फसल में परिणाम शीघ्र।
छाया, आक्सीजन तुरंत मिले गांव-नगर।।
जब तक नहीं मिलता अन्न और फल।
शुद्ध वायु बहती करती कल-कल।।
किसान है कौनसा ऐसा बुद्धिहीन।
वर्षों में अन्न-फल दे जोते ऐसी जमीन।।
उसको भी फल मिलना तुरंत हो शुरू।
व्याख्या करेगा कौन दार्शनिक गुरू।।
किए कर्म का तुरंत फल क्यों नहीं आता।
बिना किए ही क्यों यहां भ्रष्ट फल पाता।।
सिद्धांतों का उलंघन हो रहा सरेआम।
अपराधी मस्ती में, निरपराधों का कत्लेआम।।
कर्ममीमांसा इसमें कुछ भी कहे।
बेकसूर सजा को क्यों यहां सहे।।
ज्यादा समय लगता यदि कर्म के पाक में।
समाप्त हो शस्त्र ऐसा पड़कर खाक में।।
बिन किए कर्म का मैं क्यों भोगूं भोग।
निकृष्ट कर्म कर सुख ले रहे लोग।।
यह कौनसी नीति है सनातन।
पल-पल जलाती मेरे तन व मन।।
व्याख्याकारों को आना चाहिए आगे।
काम न चलेगा कहने से अभागे।।
सच में करना चाहिए प्रवेश।
रोक न सकते ब्रह्मा, विष्णु, महेश।।
अच्छी तरह यदि मैं रहता हूं।
क्यों अन्याय, कष्ट को सहता हूं।।
क्यों नहीं मिलता मुझे अच्छे का फल।
मजे लूटते हैं जो भरे रहते मल।।
कर्मसिद्धांत तब कहां जाता छुप।
अन्याय में वह क्यों रहता है चुप।।
क्यों नहीं देता तब कर्म के फल को।
क्यों सदैव टालता जाता है कल को।।
क्या इसमें भी रिश्वत चलती है।
बुरा किए की तुरंत फलती है।।
अच्छे के पास सिफारिश न रिश्वत।
बुरी बनती है इसीलिए उसकी गत।।