दारू दल्लम दावत है
ग्राम चला ख़याली विकास की राह ।
हमहू बने प्रधान सबकी यही चाह।।
गांव- गांव में उद्दे – मुद्दे, उर्गे -मुर्गे ,दारू दल्लम दावत है ।
विकास का समन्दर गाँव बनेगा ,चलती यही कहावत है।
हाथी चलता कुकुर भौंकते विस्मृत हुआ महावत है।
मतदाता भी चबासी देत हैं इहे प्रुत्याशी को भावत है।
जे गाँव के हाल कबहूँ न जाने ई चुनाव गाँव घुमावत है।
सबसे जुड़ जा हुहाँ तू चल जा असामाजिक भी सुझावत है।
तौलम गनेश के कहा न टारो, कुछ सोच के उ समुझावत हैं।
भजक्तिमान भय शक्तिमान मुर्दन में जान डलावत हैं।
– सिद्धार्थ पांडेय