दायरे से बाहर
हैं तबाही के तलातुम और मैं
है वही संगदील सनम और मैं।
वही दीवारें हैं दरमियां हमारे
वही फ़ासले वही वहम और मैं।
वही सरगोशीयाँ हैं वही लोग
वही जमाने के सितम और मैं ।
वही हुस्न तेरा ,वही ईश्क़ मेरा
है वही दिल में दर्दोगम और मैं।
वही दुनिया,वही खुदा है अजय
वही उसके ज़ुल्मोसितम और मैं ।
-अजय प्रसाद