दादी माँ
“बेटा ये क्या, तुम दादाजी को बिना अर्पण किये ही खाना खा रहे हो । तुम्हे पता नही तुम्हारे दादाजी ऊपर स्वर्ग में भूखे होंगे । पता नही उन्हें खाना मिला भी की नही !” सुधा ने अपने बेटे राहुल को डांटते हुए कहा ।
“मम्मी जब दादाजी जिंदा थे । तब तो आपने उनके खाने के प्रति इतनी चिंता नही व्यक्त की । बल्कि आप और पापा उनसे अलग हो गए थे और मैं जब आपसे कहता था कि पहले दादा – दादी के घर खाना पहुँचा के आता हूं तब तो आप मुझे डाँटकर चुप करवा देती थी । अब वो इस दुनिया मे नही है तो आप पहले उन्हें अर्पण करके आने का बोल रही है। यहाँ मेरे खाना अर्पण करने से उनके पास खाना चला जायेगा ? उनकी भूख मिट जाएगी ? उनके जीते जी तो आपने उनका सदा तिरस्कार ही किया है । अब क्या फायदा तुम्हारे इस अर्पण से । ” राहुल ने जवाब दिया ।
“देखा सुधा बच्चे जो देखते है वही सीखते है । मैंने यही बात कितनी बार तुमको समझाई थी कि तुम्हारा ये माँ – बापूजी से अलग होने का फैसला बिल्कुल गलत है । अब देखो तो अपने राहुल पर इसका क्या असर हुआ है । हम अपने बच्चे को नैतिक शिक्षा के नाम पर क्या मार्गदर्शन दे पाएंगे सोचो । जो इनके सामने का आंखों देखा आज है, कल हमारा भी होगा ।” राकेश ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा ।
“मुझे माफ़ कर दो राकेश मैंने जानबूझकर बहुत बड़ी भूल कर दी । इन बातो को समझ नही पाई ।” पश्चाताप की अश्रुधारा सुधा के आखों से झर – झर बहने लगी । जो उसके अंतर्मन में व्याप्त बुराई की मैल को धो रही थी ।
आँसू पोछकर सुधा ने अपने बेटे राहुल को पास में बुलाया और प्रेम से गले लगाकर कहा कि, बेटा आज वाकई तुमने मुझे मेरी गलती का अहसास करा दिया । जा जाकर तुम्हारी “दादी माँ” को बुलाकर अपने घर ले आ और हा अलमारी से आगे वाले कमरे की चाबी भी लेते आना मुझे तुम्हारी दादी माँ के लिए कमरे की सफाई भी करनी है ।”
© गोविन्द उईके