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25 Jun 2024 · 6 min read

दादाजी ने कहा था

दादाजी ने कहा था

वाणी ने कहा, वह अध्यापिका बनना चाहती है ।
“ पर क्यों ? मैंने इतनी मेहनत से बिज़नेस खड़ा किया है , तुमने इतने बड़े इंस्टीट्यूट से एम बी ए किया है, वह सारा पानी में बहा देना चाहती हो ?”

“ शिक्षा बाँटने से पानी में कैसे बहेगी पापा ? “

“ यह सब बार बार इसे दादाजी के पास गाँव छोड़ने के कारण हुआ है, “ ग़ुस्से में चुपचाप बैठी मम्मी ने फटते हुए कहा।

पापा चुप हो गए, मम्मी किचन चली गई , और वाणी ने मन ही मन कहा, सच ही तो है यह सब दादाजी के कारण हुआ है ।

वह छोटी थी तो मम्मी पापा दिल्ली में अपना बिज़नेस खड़ा कर रहे थे, वे देर रात तक काम करते, सुबह उनकी मीटिंगें शुरू हो जाती, कौन से नए क़ानून बन रहे हैं, कच्चा माल कहाँ से मंगाया जाय, कौन सा बैंक लोन दे रहा है, कौन से मिनिस्टर से पहचान निकाली जा सकती है, वग़ैरह वग़ैरह , घर में बस यही चर्चा के विषय होते ।

पापा को लगता, नन्ही वाणी के लिए यह माहौल पर्याप्त नहीं है, इस आयु के बच्चों को प्रकृति के संग होना चाहिए, कहानियाँ सुननी चाहिए, बेतहाशा भागना चाहिए, न कि यह स्ट्रैसफुल बातें ।

पर मम्मी का सोचना अलग था, उन्हें लगता था, वह बिज़नेस सीख रही है, पाँच साल की बच्ची फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट्स, इन्वेस्टमेंट जैसे शब्द सुन रही है ।

तो उन्होंने एक मध्य मार्ग निकाला, गर्मियों की हर छुट्टी में वाणी दादाजी के साथ गाँव में रहेगी, जहां उसका डीटोक्सीककेशन हो सकेगा ।

दादाजी मस्तमौला आदमी थे , कुछ ज़मीनें थी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के विख्यात पंडित थे, घर के पीछे प्रैस थी, जहां से उनकी और उनके मित्रों की पुस्तकें छपती थी, वह हमेशा व्यस्त होते, पढ़ना, लिखना उनका स्वभाव था, वह प्राचीन लेखकों की बातें ऐसे करते मानो वे उनके मित्र हों । संध्या समय हर उम्र के लोग उनसे मिलने आ जाते, एक चौपाल सी लग जाती, जिसको जहां जगह मिलती वह बैठ जाता । दादाजी हमेशा अपनी कुर्सी पर विराजमान होते , शंभु घूम घूमकर सबको चाय शर्बत पिलाता रहता ।

दादी रही नहीं थी, घर पुरानी नौकरानी सँभालती थी, समय के साथ सारे पुराने नौकर दादाजी का परिवार हो गए थे, वहीं रहते थे, और दादाजी किसी के मामले में दख़लंदाज़ी नहीं करते थे। अलमारी में दादाजी पैसे रख देते थे, शंभु बहुत सँभालकर उससे घर का प्रबंध करता रहता था ।

दादाजी की शाम की महफ़िल का आरम्भ होने का कोई समय नहीं था, न ही समाप्त होने का, लोग आते , यदि दादाजी अपने पुस्तकालय में होते और व्यस्त होते तो लोग आपस में बातें करके चले जाते, कभी दादाजी मस्ती में होते तो आधी रात तक बातें करते । उन्होंने वाणी के पापा को इसी खुले माहौल में पाला था , और बड़े होकर जब पापा ने एम बी ए कर बिज़नेस करने की इच्छा व्यक्त की थी तो उन्होंने बिना कोई प्रश्न किये, ज़मीन का एक हिस्सा बेचकर , उन्हें धनराशि दे दी थी, कहा , “ पुरखों की ज़मीन पर तुम्हारा भी पूरा हक़ है, और पैसे चाहिए हों तो बता देना । “

पापा ने जाते हुए पैर छुए तो पीठ पर धौंल जमा दी , “ जाओ । “ और हंस दिये ।

दिन भर की गर्मी के बाद शंभु ने बाहर आँगन में छिड़काव कर दिया था, बादाम का शर्बत लोगों को राहत दे रहा था , तारों भरी वह जवान रात अजब सा जादू लिए थी और दादाजी डारविन से लेकर योग शास्त्र की बातें किये जा रहे थे, आज जैसे वे अपनी ही लय में थे ।

आज के बच्चों के अधिक शिक्षित होने की बात चली तो वे हंस दिये , “ बनी बनाई सूचनाओं को घोंट लिया तो क्या कमाल किया, इनके आने वाले बच्चों को यह सूचनाएँ और अधिक मिल जायेंगी , पर उसमें क्या विशेष है। क्या इससे परिदृश्य उभरा, समझ में आया यह ज्ञान तिलतिलकर कैसे एकत्र हुआ है । जानते हो फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया को समझने में मनुष्य जाति को पूरे चार सौ साल लगे , जिसे आज तीसरी कक्षा का बच्चा यू ही पढ़ लेता है ! “ फिर वे गंभीर हो गए , “ कभी कभी सोचता हूँ यदि मानवता सही राह पर होती और सबको शिक्षा मिल पाती , तो कितने और लोग ज्ञान बटोरने के काम में लग जाते, आज हमारे पास कितनी समस्याओं के निदान होते, जिसे समझने में चार सौ वर्ष लगे , वह चार दिन में हो जाता ।”

वाणी ने उनकी बात सुनी और मन ही मन कहा , बड़ी होकर मैं पढ़ाऊँगी, और कुछ नहीं ।

वह स्वप्न अब तक उसने अपने तक ही रखा था, आज पापा के साथ आफ़िस जाने की बात आई तो उसने बता दिया ।

पापा चाहते थे , यदि पढ़ाना ही है तो अपनी यूनिवर्सिटी खोली जाए, शिक्षा को बिज़नेस की तरह फैलाया जाय, परन्तु वाणी चाहती थी, झोला उठाया जाय, हर झुग्गी झोपड़ी में ज़ाया जाय , और यहीं टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी ।

लगभग एक महीने तक घर में तनाव की स्थिति बनी रही । पापा अपनी नाराज़गी चुप रहकर दिखा रहे थे , और माँ बातचीत में ज़रूरत से ज़्यादा इज़्ज़त देकर । वाणी जानती थी पापा अब बात तभी करेंगे जब वह खुद इसके लिए तैयार होंगे , उसने अपनी सारी ताक़त इस क्षेत्र में शोध करने में लगा दी । वह जितना ज़्यादा शोध करती जा रही थी , उतना ही उसका निश्चय दृढ़ हो रहा था , समस्या की गंभीरता से उसको लग रहा था , जीवन में इस राह को चुनना, समय की माँग है , नहीं तो पूँजीवादी संस्कृति सब कुछ निगल लेगी।

पापा रोज़ देख रहे थे , वाणी के चेहरे के भाव बदल रहे है, वह अधिक शांत और अंतर्मुखी हो रही है ।

फिर एक दिन वह खाने की मेज़ पर लैपटॉप पर काम कर रही थी , उन्होंने देखा वाणी अपने काम में इतना खोई है कि उसे उनके आने की आहट भी सुनाई नहीं दी , दूर से उन्होंने उसके लैपटॉप पर नज़र डाली तो वह समझ गए कि पढ़ाने के काम की उसकी स्पष्टता बढ़ती जा रही है । रात के भोजन के बाद उन्होंने उससे बात करने का निश्चय कर लिया ,
पापा ने उसे अपने सामने बिठाते हुए कहा ,

” तुम भाग्यशाली हो तुम्हारे पास पैशन है, बिज़नेस करने की ट्रेनिंग है, उसे कर सकने की सुविधा है, अमेरिका की कितने ही विश्वविद्यालयों को बड़े बड़े बिज़नेस मैन ने खड़ा किया है, और अपने देश की तरक़्क़ी के लिए हमें करना भी चाहिए ।”

“ वो सब सही है पापा, पर मैं पैसा निवेश करने की बात नहीं कर रही , स्वयं को निवेश करने की बात कर रही हूँ, मैं शुरुआती शिक्षा उन बच्चों को देना चाहती हूँ जो कभी स्कूल नहीं जा पायेंगे , क्या पता उनमें कितने वैज्ञानिक, कलाकार छिपे हों , जो मेरी थोड़ी मेहनत से निखर जायेंगे , आगे लगेगा तो इनके लिए मैं विश्वविद्यालय भी खोल लूँगी ।”

“ ठीक है तुम जाना चाहती हो तो जाओ, मेरे पिता ने भी मुझे कुछ भी करने से कभी नहीं रोका, मैं भी नहीं रोकूँगा ।”

“ यह आप क्या कर रहे है, इतनी जल्दी हार मान गए?” चुपचाप पास बैठी मम्मी ने कहा ।

“ ऐसा ही समझो ।” कहकर पापा अंदर चले गए ।

माँ चुप हो गई, उन्हें लगा, वह और नहीं सह सकती, वह उठकर बालकनी में चली गई ।

रात को जब माँ पापा अकेले थे तो माँ ने कहा , “ यह ठीक नहीं हुआ, पता नहीं कहाँ कहाँ झक मारेगी ।”

पापा ने चश्मा हटाते हुए कहा,
“ बच्चे की पैशन को दबाना , और अपनी परवरिश पर विश्वास न करना , वह सबसे बड़ी हार होती। बिज़नेस खड़ा करना हमारी पैशन थी , इसका बोझ मैं अपनी बेटी पर नहीं लादूँगा , और वह ग़लत क्या कर रही है, धन की बजाय अपने विचार और भावना को महत्वपूर्ण समझ रही है , बस , इतनी सी बात ही तो है , और यह विचार ठीक ही तो है , यदि सबको ज्ञान अर्जित करने का अवसर मिले तो ज्ञान की गति न जाने कितनी तीव्र हो जाए ।”

“ ठीक है बाबा , जब बाप बेटी मिल गए हैं तो मैं क्या कर सकती हूँ , और वह मुँह फेर कर सो गई । पापा मुस्करा दिये , उन्हें कहीं गहरे अपने पिता और बेटी दोनों पर गर्व हो रहा था ।

——शशि महाजन

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