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17 Jul 2024 · 1 min read

दाता

दाता केवल ईश है,
देता है दिन रैन।
तृष्णा बुझती है नहीं,
मानव है बेचैन।।
मानव है बेचैन,
अपेक्षा बढ़ती जाती।
सदा बदलती रूप,
चाहतें सदा सताती।।
‘डिम्पल’ धरिए धीर,
साथ कुछ भी कब जाता।
मन में रख संतोष,
बहुत देते हैं दाता।।

@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️

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