दहशत इनकी है बड़ी
दोहे
दहशत इनकी है बड़ी, थर्राती है भीत।
भला पुलिस की मारसे, कौन सका है जीत।।
पंछी पर मारें नहीं, ऐसी इनकी बीट।
करें सेठ की चाकरी, रहे दीन को पीट।।
पुलिस हाथ हो मामला, बने लीक भी सांप।
ले दे के ही सुलझता, बने गधा भी बाप।।
ऐसा लगता है मुझे, थाने में हो भूत।
गाली से हो स्वागतम, बात बात पर जूत।।
खाखी से खादी मिली, फैला भ्रष्टाचार।
सट्टा जूआ संग में, चला नशा व्यापार।।
खाखी भूली फर्ज जब, तभी बढ़े अपराध।
खाखी खादी बांटते, हिस्सा आधो आध।।
‘सिल्ला’ इनसे डर रहा, पीटें ये बेखोट।
भला कौन है उबरता, पड़ी पुलिसकी चोट।।
-विनोद सिल्ला