दस पैसे रोजाना -सार छंद –
प्रथम फुहारों से बारिश की,मौसम हुआ सुहाना !
लगा नाचने मोर झूमकर, …हुआ मस्त दीवाना !
राजी हुआ खेतिहर ऐसे, ….जैसे मिला खजाना !
कुदरत का ये खेल समूचा, कहाँ किसी ने जाना !!
रमेश शर्मा
वो माता का मुझे डांटना ,….फिर से मुझे मनाना !
आये शैशव का रह रह कर, मुझको याद जमाना !
देती थी माँ मुझे हाथ में ,……… दस पैसे रोजाना !
हुआ पाठशाला की खातिर, जब भी कभी रवाना !!
रमेश शर्मा