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27 Mar 2022 · 1 min read

“दस्तूर-ए-हयात”

दस्तूर-ए-हयात में कुछ ऐसी हलचल हुई,
हमारी ख़ुशियाँ ग़मों को भी ख़लने लगीं…

कर रहे थे कोशिशें कि सवर जाएं हम,
पर हमारी क़िस्मत ही हमको छ्लने लगी…

मसलन दिन में न जाने कैसे अंधेरा हुआ,
हमारी उम्मीदों की हर शामें ढ़लने लगीं…

आगे-आगे चलें हम मंज़िल लिखते हुए,
पर “हृदय” बदक़िस्मती मिटाते चलने लगी…
-रेखा “मंजुलाहृदय”

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 298 Views
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