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9 Jun 2023 · 1 min read

दस्तक

सुन नहीं पाया दस्तक
ख़ुशी
खटखटाती रही रात भर
मैं प्रपंचों की चादर ताने ,
ओढ़ कर पूरे विश्व को
सुधारता रहा समाज ,काल , परिस्थिति ।
भगाता रहा शांति और धैर्य को ,
सुनता रहा इच्छाओं का
अनंत शोर ।
कब आयी कब चली गयी
बदली नहीं तकदीर ,
सुधरा नहीं मैं
अब सोऊंगा नहीं
दरवाजे खुले रखूँगा ।
और सही एक प्रयास

सतीश पाण्डेय

1 Like · 99 Views
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