दशहरे का मेला
उस दिन चारों ओर बहुत गहमागहमी थी , पास के गांव में दशहरे का मेला लगा हुआ था। रामू किसान के दोनों बच्चे अजय एवं संगीता मेला देखने जाने की जिद कर रहे थे। अजय की उम्र सात वर्ष और छोटी बहन संगीता चार वर्ष की थी।
दीपावली आगमन की तैयारियां चल रही थी। घर की सफाई एवं दीवारों की पुताई का कार्य जोरशोरों से चल रहा था। दरवाजों के लिए नया पेंट भी खरीदना था। इसके अलावा पुराने सामान को बदलकर नया सामान की घरेलू एवं कृषि कार्य के लिए खरीदना था। जिसकी सूची रामू ने बना रखी थी।
अतः रामू ने तय किया कि अगले शुक्रवार को सवेरे ही मेले के लिए पत्नी सावित्री एवं बच्चों के साथ रवाना हुआ जाए। वह आवश्यक खरीदारी कर लेगा और बच्चे भी मेले में झूले एवं अन्य खेलों एवं मिठाइयों का आनंद लेकर खिलौने आदि खरीद लेंगे। सावित्री भी अपने लिए नई साड़ी एवं बच्चों के लिए नए कपड़े एवं उसके लिए नई धोती एवं कुर्ता खरीद लेगी।
तय समय पर सवेरे 7:00 बजे रामू उसके पड़ोसी सोनू काका के परिवार के साथ उनकी बैलगाड़ी मैं सपरिवार मेले के लिए रवाना हो गया। मेला पहुंचते-पहुंचते 9:00 बज गए। सावित्री सोनू काका की पत्नी पार्वती एवं बच्चों के साथ खरीदारी करने एवं मेला देखने के बाद एक निर्धारित स्थान पर लौटकर मिलने का वादा कर निकल पड़ी। रामू सोनू काका के साथ आवश्यक सामग्री खरीदने के लिए निकल पड़ा।
सबसे पहले बच्चे झूला झूले , उसके बाद मौत का कुआं खेल देखा। मूंगफलियां खाईं , जलेबियों एवं चाट समोसों का स्वाद भी लिया। फुटबॉल एवं अन्य खिलौने भी खरीदें। संगीता ने एक सुंदर सी गुड़िया खरीदी। बच्चे बहुत खुश एवं प्रसन्नचित्त थे। उसके पश्चात सावित्री एवं पार्वती साड़ी की दुकान पर साड़ियों देखने लगीं। सावित्री ने दो बनारसी साड़ियां खरीदीं और पार्वती ने एक बंगाली साड़ी खरीदी। उसके बाद वे लोग बच्चों की कपड़ों की दुकान में गए और बच्चों के लिए शर्ट हाफ पेंट सूट एवं फ्रॉक खरीदी।
मेले में भीड़ बढ़ने लगी सावित्री एवं पार्वती बच्चों का हाथ पकड़ कर मेले में मिलने की निर्धारित जगह की ओर बढ़ने लगे। सभी दुकाने खुल जाने एवं भीड़ बढ़ जाने की वजह से वे रास्ता भटक गए। फिर भी लोगों से पूछताछ कर वे आगे बढ़ने लगे ,
इस दौरान संगीता का हाथ छूट गया और वह भीड़ में गुम हो गई। सावित्री बहुत परेशान हो गई उसने संगीता को ढूंढने की बहुत कोशिश की परंतु वह नहीं मिली। निर्धारित स्थान पर ना पहुंचने के कारण रामू और सोनू काका उन्हें ढूंढते हुए उनसे आकर मिले। संगीता के खो जाने से रामू को चिंता होने लगी उसके दिमाग में अजीब अजीब से ख्यालात आने लगे , फिर भी उसने अपना धैर्य नहीं खोया ;और पास की पुलिस चौकी से संपर्क कर घटना की पूरी जानकारी दी। पुलिस ने तुरंत वायरलेस पर कंट्रोल रूम को सूचना दे दी एवं मेले में स्थित समस्त पुलिस कर्मियों को इसकी सूचना मिल गई और वह तुरंत हरकत में आ गई।
मेले के दक्षिण गेट पर तैनात कांस्टेबल रामवीर को एक महिला के साथ एक बच्ची नजर आई जो रो रही थी। और वह महिला उसे चॉकलेट का प्रलोभन देकर चुप कराने की कोशिश कर रही थी।
रामवीर का माथा ठनका उसे लगा कि उस महिला का बच्ची के प्रति व्यवहार कुछ अजनबी सा था।
हो ना हो वह महिला किसी बच्चे उठाईगीर गिरोह से संबंधित थी। जो इस प्रकार मेले से बच्चे उठाने का काम करते हैं।
रामवीर ने तुरंत पहुंच कर उस महिला से पूछा कि वह बच्ची उसकी क्या लगती है। तो उसने कहा कि वह उस बच्ची की बुआ है। उसने उस महिला से उस बच्ची का नाम पूछा तो वह कुछ गड़बड़ा सी गई और आनन-फानन में उसका नाम आयशा बताया। रामवीर ने बच्ची से पूछा तुम्हारा नाम क्या है तो उसने अपना नाम संगीता बताया और कहा कि वह अपने माता पिता एवं भाई के साथ मेला देखने आई है ,उसके गांव का नाम पृथ्वीपुर है। वह उस महिला को जानती नहीं है और वह उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहती है।
रामवीर ने तुरंत उस महिला को पकड़ कर कंट्रोल रूम सूचित कर दिया देखते ही देखते पुलिस हरकत में आ गई और मेले से उस औरत की शिनाख्त पर पूरे गैंग के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। और कंट्रोल रूम में सूचना देकर संगीता को उसके माता पिता के हवाले कर दिया।
पुलिस इंस्पेक्टर ने रामू का धन्यवाद किया कि समय रहते उसने पुलिस को सूचित कर , इस प्रकार बच्चों के अपहरण की घटनाओं की रोकथाम में सहयोग प्रदान किया है।
रामू ने पुलिस एवं मेला प्रशासन को तुरत कार्रवाई करने का हार्दिक आभार प्रकट किया ।