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30 Sep 2019 · 1 min read

दशहरा

1
अब कलयुग की जीत है , रामराज्य की हार ।
राम नहीं मिलते यहाँ, रावण की भरमार ।।
रावण की भरमार, लोभ ही रहता मन में।
हो अधर्म की जीत,रही है इस जीवन में ।
कहे ‘अर्चना’ बात, स्वार्थ में ही डूबे सब।
लाज-शर्म को छोड़, आधुनिकता हावी अब।।

2
मन में बैठे दैत्य को , रहा न कोई मार ।
रावण के पुतले जला, मना रहे त्यौहार ।।
मना रहे त्यौहार, पुरानी परिपाटी पर।
नहीं समझते मर्म, छिपा जो इसके भीतर।
कहे ‘अर्चना’ बात, कहाँ कुछ उस जीवन में।
अवगुण बैठे राज, जहाँ करते हैं मन में।।

30-09-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

1 Like · 242 Views
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