दशहरा मेरी नज़र में
दशहरा निकल गया।रावण जल गया।पर मेरे मन में प्रश्न अनेक सिर उठा रहे हैं।आखिर यह नवराते वर्ष में 2 बार क्यों आते है।रावण क्यों जलाया जाता है हर साल। फिर भी नही मरता रावण।यदि बुराई पर भलाई की जीत इसका कारण होता तो कंस पर कृष्ण की विजय का जश्न भी इसी तरह मनाया जाता।या शंकर जी ने अथवा बह्मा जी ने भी किसी बुरे पात्र का नाश किया होगा तो उनको हम इस तरह के पर्व के रूप में क्यों नही मनाते। निश्चित ही इन पर्वो का नामकरण और बात है और मनाने का कारण कुछ और।जैसे दूकान का नाम अमेरिकन स्वीट सेंटर डाल दे और फिर उन मिठाइयों का लॉजिक अमेरिका से जोड़ने की कोशिश करें। ठीक उसी तरह इन पर्वो का नाम सिर्फ जोड़ दिया गया है।रावण और होली का हिरण्याक्ष के साथ। मेरा निजी विचार है कि। बरसात के बाद हुई गन्दगी को इकट्ठा करके उसका रावण बनाया जाता होगा यानि सारे गांव या बस्ती के कचरे आदि का ढेर एक जगह लगाकर उसको रावण का नाम दे दिया होगा एवम् उसको जलाकर वातावरण को गन्दगी मुक्त किया गया होगा जो कालांतर में पुतलो को जलाने के रूप में विकसित हो गया ।
इसी प्रकार 6 माह बाद सर्दी एवम् ग्रीष्मकाल के सन्धिसमय में होली के नाम पर समान उपक्रम किया गया होगा। इसको राग मोह द्वेष जलाने का नाम भी सम्भवतः इसलिये दिया होगा कि अवांछित वस्तुओ से राग या मोह न रख्खा जाए। और यदि कोई मोह रक्खे तो जबरन चोरी करके पडौसी उन वस्तुओ को अनल समर्पित कर दे।क्यों की गन्दगी किसी के भी घर की हो प्रभावित पूरा मोहल्ला या बस्ती होती है।इसी प्रकार घमण्ड को तोडा गया होगा कि कौन मेरी वस्तुओ को ले जा सकता है ऐसा कोई प्रदर्शित करें तो कुछ लोग इकट्ठा होकर उसके घमण्ड को तोड़े।आदि आदि कई कारण हो सकते है।मैंने निजी अल्पमति के अनुसार लिखा है आप सहमत हो न हो यह आपका दृष्टिकोण हो सकता है।आप भी यदि कोई वैज्ञानिक तथ्य रख सके तो स्वागत है।अस्तु।।।
मधुसूदन गौतम
अटरू राजस्थान