दशहरा (गीत)
दशहरा(गीत)
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रावण का पुतला हर साल दशहरे पर जलता है
(1)
भरी भीड़ के बीच पराजित बलशाली होता है
सोने की लंका का मालिक सिंहासन खोता है
अहंकार हिमशिखरों जैसा ऊँचा सब गलता है
रावण का पुतला हर साल दशहरे पर जलता है
(2)
नारी को जो चुरा रहा यह उससे हुई लड़ाई
लड़ा अनैतिकता से यह ताकत जटायु में आई
माफ करेगा उसे न जग जो गलत राह चलता है
रावण का पुतला हर साल दशहरे पर जलता है
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451