दलित
१
ना जाने कहां से उत्पन्न हुआ नाम मेरा,
इतिहास पता नहीं आज तक मुझे,
सुना है ब्रह्मा ने सृष्टि बनाई,
कर्म के आधार पे,
बंट गए मानव चार में
सभी के जीवन आधार को संरक्षित किया,
कोई सोए न भूखे पेट,
शायद इसीलिए जन्म से ही संरक्षित किया।
मान सभी का था बराबर हर युग में,
फिर किस ने फैलाई बात यह कि मैं दलित सबसे अलग,
कई उदाहरण दिए हमें नीचे दिखाते हुए,
पर क्या सत्य कोई कोशिश की जानने कि?
हम बंटते चल गए सबसे अलग होते चल गए,
अपने ईश्वर को भी हम ना छोड़े
हर घड़ी करते अपमान उसका,
फिर कोई फायदा क्यों ना उठाए हमारे इस बंटवारे का।
। २
चलो आज बताता हूं मैं इतिहास अपना,
जन्म हुआ मेरा सतयुग में,छोटा था मैं सबसे घर में
नाम परा शुद्र मेरा
खेती बाड़ी, पशु पालन, घर , वस्त्र, शस्त्र
निर्माता था मैं सबका
मानो मैं नहीं तो सृष्टि नहीं,
ब्रह्म विद्या देता था सबको,
क्षत्रिय करता था रक्षा सभी का,
वैश्य व्यापार करता था मेरे निर्माण का,
सभी करते थे आदर एक दुसरे का,
ना मैं था अछूत और ना ही दलित
सवेक था जरूर में सभी का,
पर गर्व से रहता था मैं
फिर कहा से उत्पन्न हुआ यह नाम मेरा
३
त्रेता में सभी आदर करते थे मेरा,
राम खेला करते थे मेरे बच्चों के संग,
मैं निषाद प्रिय मित्र था उनका,
फिर ना जाने क्यों आजकल के अर्धज्ञानी
उठाते उंगली उन पर,
ना समझते अर्थ किसी का,
पर अपने फायदे के लिए,
बांट देते हैं समाज को,
ना जाने कहां से उत्पन्न हुआ नाम मेरा,
जो रामभक्त तुलसी को भी बदनाम किया।
४
अब आ जाओ तुम द्वापर में,
कृष्ण संग रहते थे हमारे, खाते सब मिल के साथ
शैतानी में उसके हम भी तो थे भागीदार,
उठा अफवाह कर्ण को शिक्षा देने से मना किया गुरु द्रोण ने,
पर सच नहीं यह बात अधुरी है,
जा के करो जरा जांच परताल,
गुरु द्रोण ने मांग लिया एकलव्य से अंगुठा
क्यों कि वह शुद्र था,
अरे प्यारे लिखा है साफ वह मगध सेनापति का पुत्र था,
क्यों अर्ध ज्ञान के पिछे भागते हो,
कभी तो ख़ोज किया करो सत्य का ,
ना जाने कौन साहित्य से नाम उत्पन्न हुआ मेरा।
५
अब कलयुग आया श्रोता मेरे
शायद यह हि उत्पन्न हुआ नाम मेरा,
विदेशी हमें तोड़ने के लिए बांट दिया मुझे तुमसे
क्या मुग़ल,क्या अंग्रेज
सब ने फायदा उठाया मेरा,
हमें नीचा दिखाने को कर्म से भ्रष्ट किया हमें ,
राज करना था उन्हें हम थे कमजोर बहुत
सबसे छोटा था शायद इसीलिए जिद्दी भी कम ना थे,
वे बांटते गए हम बंटते गए
हार के सबने कर लिया हमसे किनारा,
आखिरी में आ गई यह नौबत हम हो गए सबसे अलग
अछूत , दलित ,हरिजन ना जाने क्या क्या नाम मिला
अपना हक हमने किया अलग , फिर भी कोई कुछ ना बोला
ख़ुशी ख़ुशी दे दि हमें,पर वे सम्मान दुबारा ना मिल पाया
आज भी नेता अपने फायदे के लिए हमें बांट रहे
और मुर्खो के तरह हम बंट रहे
बिना सोचे समझे किसी पर भी उंगली उठा रहे,
आज भी पहचान ना सके हम अपने हितैशी को,
कोई कुछ बोले तो घर छोड़ने कि धमकी दे जाते।
अरे अब तो जाग जाओ,रहम पर नहीं शान से जीना सीखो
अब जाने कहां से उत्पन्न हुआ नाम मेरा ।