Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jul 2017 · 4 min read

*** दलित बनाम सवर्ण राजनीति ***

आज दलित राजनीति महज़ दलितों के साथ राजनीति हो गयी है । जिस कारवां को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडर ने जिस बुद्धिमता से आगे बढ़ाया और कहा था ये कारवां कभी रुकना नही चाहिए । माननीय कांशीराम जी ने इस कारवां को एक जन आंदोलन का रूप दिया और एक सशक्त दलित नेतृत्व उभरा । लेकिन ये कारवां और आगे बढ़ता उससे पहले ही सत्तावादी भूख ने इसे निगलना आरम्भ कर दिया और सत्ता के लिए अपने मूल सिद्धांतो के साथ समझौता कर लिया गया । धीरे-धीरे दलित आंदोलन ने एक पार्टी विशेष का रूप धारण कर जिसका मक़सद महज सत्ता प्राप्त करना रह गया । एक आंदोलन जब समझौतावादी नीति का अनुशरण करने लग जाता है तब समझो वह आंदोलन निष्प्राण होता जा रहा है । यही दलित आंदोलन की राजनीति के साथ भी हुआ । जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने है । आज सवर्ण एवं सबल वर्ग किसी दलित को कितने ही ऊँचे ओहदे पर क्यों न बिठला दे परन्तु
उस अहसान तले दब उनकी जी हजूरी को वह मजबूर ही होगा क्योंकि पिछलग्गू को ही यह अवसर प्रदान किया जायेगा ।वह अपना उत्थान तो कर लेगा परन्तु उन लाखों करोड़ों दलितों का हक मारकर वह राजभवन की शोभा ही बढ़ाएगा । उससे दलित पीड़ित वर्ग को कोई फायदा नही होगा वरन एक मुद्दा बन जायेगा आगामी चुनाव में दलित वोट अपने पक्ष में संग्रहण करने का ।

आजादी के इतने वर्षों बाद भी दलित दलित ही है या यूं कहें इन दलितों में भी दलित हैं जिन्हें अस्पृश्य कहा जा सकता है ।
दलितों को राजनीति में आरक्षण मिले अर्द्ध शताब्दी से ज्यादा हो गया है क्या संसद में पहुंच कितने दलित प्रतिनिधियों ने अपने दलित भाइयों की पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान की है । सरेराह उन्हें जलील किया जाता है बेरहमी से उन्हें मार दिया जाता है और ये दलित नुमाइंदे संसद,विधानसभा में अपनी सीट के साथ अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं और अपनी उपलब्धियां गिनाते नही अघाते । जरा याद करो तुमने जो हासिल किया है वह इन्ही पद दलितों की बदौलत किया है क्या तुम्हारा इन अपने भाइयों के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता क्या तुम फिर से अपनी झोली फैलाकर इन्ही के पास नही आओगे। सोचो किस मुख से तुम इनके पास जाओगे ।
मैंने देखा है जितना दलित वर्ग का शोषण हुआ है उसमें दलित वर्ग का प्रतिनिधि ही जिम्मेदार है । क्यों वह अपने भाइयो की ताकत बन नही उभराता क्या सत्ता लहू उसके इतना मुँह लग चुका है कि वह अपने मूल अस्तित्व को ही भूल गया है ।
मानलो आप सत्ता सुख पा सबल हो गए हो तो फिर तुम आरक्षित सीट के लिए क्यों मुख धोते हो । अपने आकाओं से अगर औकात है तो सवर्ण सीट से जितना तो क्या टिकट प्राप्त कर ही बतलादो हम मान लेंगे आप अपने समाज के बिना ही सबल प्रबल हैं।
रही बात प्रतिनिधित्व करने की आज तक कितने दलित जन प्रतिनिधयों ने निस्वार्थभाव से दलित जनों की आवाज बन सदन में आवाज़ उठाई है ।फिर भी जिन्होंने आवाज़ उठाई है वे साधुवाद के पात्र हैं ।
बेचारा दलित उसे तो किसी के साथ होना ही है,मारो तो ठीक अब तारो तो ठीक सर्व समर्पण निढाल हो कर कर ही देता है । ना वह लड़ सकता है ना मर सकता है । हुजूर की जी हुजूरी करता आया है कर सकता है ।
आज भी दूरस्थ ग्रामीण अंचल में वही चतुर्वर्ण पंचम वर्ग अंत्यज को बनाये हुए हैं जो आज भी सर्वाधिक पीड़ित प्रताड़ित है उसे आरक्षण नही आज भी रक्षण संरक्षण की जरूरत है।
योग्यता आज भी जाति की दासी है ज़रा देखो उनके मुख पर आज भी उदासी है ।
मुझे आज भी राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की वह पंक्तिया याद आती है
यद्यपि आरत भारत है
पर
भारत के सम भारत है
इस संसार में शायद ही भारत के अलावा दूसरा देश होगा जो कल भी दुःखी था आज भी दुःखी है,इस पीड़ित देश के समान दूसरा देश नहीं है।
वैमनस्य की भावना फ़ैलाने में हमारे समाचार पत्र भी कम नहीं है दलित और सवर्ण में भेद की खाई पाटने का काम करने के बजाय उसे इतना गहरा कर देना चाहते हैं कि वह कभी भर नहीं पाये।
आरक्षण क्यों ? जिनको संरक्षण नहीं उनको आरक्षण
जातिगत आरक्षण हटना चाहिए मैं तहदिल से इस बात को स्वीकार करता हूं कि जातिगत आरक्षण हटना चाहिए ।

आज मंदिर का पुजारी बनने के लिए मंत्रोचारण की योग्यता से ज्यादा जाति की योग्यता जरूरी है,ज्ञान पंडित की नहीं,जाति पंडित की आवश्यकता क्यों ।
क्या यह आरक्षण नहीं
देश की सुरक्षा की हम बात करते हैं क्या जातिगत रेजिमेंट का होना ।
क्या ये आरक्षण नहीं
एक विशेष जाति वर्ग को हेरिटेज के लिए लाखों का अनुदान देना ।
क्या ये आरक्षण नहीं
हम हिंदुस्तानी आदमी का आंकलन उसकी जाति पूछ कर करते हैं उसकी योग्यता देखकर नहीं । जाति पूछ कर व्यवहार करते हैं योग्यता देखकर नहीं ।
मगर सब एक से नहीं होते ।
जो एक से नहीं है अधुना विचाधारा वाले हैं उन्हें एकजुट हो आगे आना चाहिए । केवल समानता मंच बनाकर वैमनस्य नही फैलाना चाहिए ।

हमें दिल से सवर्ण अवर्ण का भेद मिटाकर एक ऐसा मंच बनाना चाहिए जहां समानता केवल प्रपंच ना बन जाये ।
इस दोहरे आरक्षण से सवर्ण अवर्ण दोनों पीड़ित है । एक साझा मंच बनाये और एक सकारात्मक क़दम उठाये ।
जिससे दलित (सवर्ण और अवर्ण दोनों) समाज यहां जाति से सवर्ण या अवर्ण नही है । जो पीड़ित जन है उसको हम न्याय दिलाये ।
अर्थ पीड़ित को भी और वर्ग पीड़ित को भी तभी सामंजस्य और समरसता को बनाये रखा जा सकता है और इसकी आधुनिक भारत को महत्ती आवश्यकता है । महत्ती आवश्यकता है।

कुछ खामियां हो सकती है मैंने इसे दोबारा नहीं पढ़ा है न ही गढ़ा है,बस जो मन में आया उसी को पढ़ा है और यहां उत्कीर्ण कर दिया है ।
?मधुप बैरागी
प्रेरणा स्रोत दैनिक भास्कर सम्पादकीय
19 जुलाई 2017
साभार

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 455 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from भूरचन्द जयपाल
View all
You may also like:
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
Madhuyanka Raj
कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
Subhash Singhai
स्वाद छोड़िए, स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए।
स्वाद छोड़िए, स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए।
Sanjay ' शून्य'
पिछले पन्ने 8
पिछले पन्ने 8
Paras Nath Jha
फूल मुरझाए के बाद दोबारा नई खिलय,
फूल मुरझाए के बाद दोबारा नई खिलय,
Krishna Kumar ANANT
माना जिंदगी चलने का नाम है
माना जिंदगी चलने का नाम है
Dheerja Sharma
"पहले मुझे लगता था कि मैं बिका नही इसलिए सस्ता हूँ
दुष्यन्त 'बाबा'
■ आप भी बनें सजग, उठाएं आवाज़
■ आप भी बनें सजग, उठाएं आवाज़
*Author प्रणय प्रभात*
मैं तेरा कृष्णा हो जाऊं
मैं तेरा कृष्णा हो जाऊं
bhandari lokesh
जिंदगी में रंग भरना आ गया
जिंदगी में रंग भरना आ गया
Surinder blackpen
साथ चली किसके भला,
साथ चली किसके भला,
sushil sarna
सत्य साधना -हायकु मुक्तक
सत्य साधना -हायकु मुक्तक
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
*******खुशी*********
*******खुशी*********
Dr. Vaishali Verma
2122 1212 22/112
2122 1212 22/112
SZUBAIR KHAN KHAN
ख्वाबों ने अपना रास्ता बदल लिया है,
ख्वाबों ने अपना रास्ता बदल लिया है,
manjula chauhan
श्रीजन के वास्ते आई है धरती पर वो नारी है।
श्रीजन के वास्ते आई है धरती पर वो नारी है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
लोग कहते हैं खास ,क्या बुढों में भी जवानी होता है।
लोग कहते हैं खास ,क्या बुढों में भी जवानी होता है।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
Jay Dewangan
हालात बदलेंगे या नही ये तो बाद की बात है, उससे पहले कुछ अहम
हालात बदलेंगे या नही ये तो बाद की बात है, उससे पहले कुछ अहम
पूर्वार्थ
मार मुदई के रे... 2
मार मुदई के रे... 2
जय लगन कुमार हैप्पी
स्वयं को स्वयं पर
स्वयं को स्वयं पर
Dr fauzia Naseem shad
खंड 8
खंड 8
Rambali Mishra
मत बनो उल्लू
मत बनो उल्लू
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
The Third Pillar
The Third Pillar
Rakmish Sultanpuri
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
DR ARUN KUMAR SHASTRI
*गधा (बाल कविता)*
*गधा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
साहित्य क्षेत्रे तेल मालिश का चलन / MUSAFIR BAITHA
साहित्य क्षेत्रे तेल मालिश का चलन / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
Annu Gurjar
बढ़ता उम्र घटता आयु
बढ़ता उम्र घटता आयु
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
बेटी और प्रकृति से बैर ना पालो,
बेटी और प्रकृति से बैर ना पालो,
लक्ष्मी सिंह
Loading...