दलित – दलित
एक दिन की बात है कि मैं बेतिया शहर को गया। शहर जाने का मेरा कारण यह था कि मुझे ब्लड जांच करवाना था। तो मैं अपने एक दोस्त की दुकान में जा पहुंचा। वास्तव में वह मेरा दोस्त नहीं था। वह नाते में भतीजा लगता था लेकिन उम्र के हिसाब से वह मेरे बराबरी का था इसलिए एक दोस्त के जैसा व्यवहार मैं करता था।
उस दिन मैं दुकान खोलने से पहले ही पहुंच गए। पहुंचा तो दुकानदार साहब अपना दुकान खोले, तब तक सफाई करने वाली दाई आ पहुंची और उस दुकान की सफाई करने लगी।
जब वह दुकान की सफाई करने लगी, उस समय जो मेरे दोस्त दुकानदार थे। वह अश्लील और अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए उस दाई को कुछ – कुछ बोलने लगे। मुझे यह स्थिति और अभद्र शब्दों का प्रयोग देख कर के अचंभित होने लगा। बेचारी सफाई करने वाली दाई भी इनकी बातों को सिरे से नहीं लेती थी और उनके बातों पर मुस्कान छोड़ते हुए, वह भी कुछ – कुछ कहते हुए, सफाई कर रही थी। न जाने ऐसा क्यों? वह दाई ऐसे अश्लील और अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले दुकानदार के बातों को वह बुरा ना मान करके उन लोगों को बातों पर थोड़ी – थोड़ी मुस्कान छोड़ रही थी। यह उनकी मजबूरी थी या खासियत मुझे मालूम नहीं था।
मैं इधर मन ही मन सोच रहा था कि जो मेरा दोस्त है, वह दलित है और जो बुढ़िया दाई है, जो सफाई करने के लिए आई है, वही भी दलित है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि सफाई करने वाले और झाड़ू – पोछा लगाने वाले दलित घर के ही लोग होते हैं और एक दलित दूसरे दलित के लिए किस तरीका का अभद्र और अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। शायद बुढ़िया दाई के घर ज्यादा मजबूरी होगी। जिसके चलते वह दुकानदार लोगों की बातों को नजरअंदाज करते हुए, दुकान – दुकान घुम करके सफाई करती है। दो – चार सौ कमा लेती होगी और घर का गुजर-बसर शायद चल जाता होगा।
मैं उस वक्त कुछ नहीं बोला जिस वक्त बुढ़िया दाई सफाई कर रही थी लेकिन मैं यह देख रहा था कि सफाई करने वाली बुढ़िया दाई वह किसी के मां के उम्र की है तो किसी की दादी की उम्र की। फिर भी लोग उनके लिए इस प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, कितनी शर्म की बात है। खैर बुढ़िया दाई सफाई करके चली गई, तब मैंने अपने दोस्त दुकानदार साहब से पूछा कि तुम उस बुढ़िया दाई के लिए इस तरीका का अश्लील और अभद्र शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रहे थे? तो वह हंसते हुए कहा कि ये सफाई करने वाले लोग उसी प्रकार के होते हैं जब तक इन लोगों को कुछ नहीं कहिएगा इन लोगों को अच्छा नहींं लगेगा।
कुछ देर तक मैंने सोचा तो लगा कि इन लोगों के अंदर गलत सोच बैठ गई है। फिर मैंने उसको समझाया कि देख दोस्त तुम तो पढ़े लिखो हो, तो इस तरीका का अश्लील और अभद्र भाषा का इस्तेमाल कम से कम तुम मत किया करो। तुम्हें मालूम है, वह तुम्हारी दादी की उम्र की है और तो और तुम भी दलित हो और वह भी दलित है। दूसरा क्या बोलता है? नहीं बोलता हैं उससे तुम्हें क्या लेना देना? तुम तो कम से कम अपने आप में सुधार करो। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि आप क्या कह रहे है, वह कहां की, मैं कहां के और उसकी तुलना आप मेरी दादी जी से कर दिए। आपको हम ही दिख रहे हैं प्रवचन सुनाने के लिए, आप अपना प्रवचन अपने पास रखिए किसी और को सुनाइएगा। तभी मुझे एक किस्सा याद आ गया कि “भैंस के आगे बीन बजाऊ भैंस बैठ पगुरी चलाए” तब मुझे लगा कि इन्हें समझाना ही बेकार है क्योंकि यह समझने वाले में से नहीं है और उसी समय मैं सोचने लगा की देखिए एक दलित व्यक्ति दूसरे दलित व्यक्ति के बारे में कैसे सोचता है और उसके प्रति किस प्रकार की हीन भाव रखता है। मैं सफाई करने वाली बुढ़िया दाई को दलित इसलिए बोला था क्योंकि सर सफाई करने वाली, झाड़ू – पोछा लगाने वाली दाई, दलित परिवार की ही होती है क्योंकि उनके पास मजबूरियां होती है। जिसके चलते वह घर-घर घूम कर के सफाई करती है और उसी से अपने परिवार की भरण पोषण करती है।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳