दलदल…………..
दलदल…………..
लोभ,लालच,प्रलोभन
एक ही भाव के
अलग अलग परिधान
ये तीनों
अंतस गर्भ में
कुंडली मारे
हमारे कर्मों में
व्यवधान डालते हैं
आँख खुलते ही
जीने का मोह सताता है
कर्म के रास्ते
धन आड़े आता है
जवानी में
रूप का मोह सताता है
शोहरत का मोह
नींदें उड़ा ले जाता है
औलाद का मोह
रब की हर चौखट तक ले जाता है
डर और ईर्ष्या की तरह
ये हमारी परछाई बन
ज़िंदगी भर हमें सताता है
लोभ, लालच, प्रलोभन
जीवन के थाली के
वो पकवान हैं
जिनके प्रतिफल से ]
वाकिफ़ होने के बावज़ूद
इंसान इनके चखने के लोभ से
बच नहीं पाता
और
अंततः
इसकी दलदल में समाता जाता है
अंत तक
इसके जाल से निकल नहीं पाता
सुशील सरना/27424