दर्पण दिखाना नहीं है
** गीतिका **
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छुपा सत्य को मुस्कुराना नहीं है।
कहीं आज दर्पण दिखाना नहीं है।
मुहब्बत करें छोड़ दें नफरतें अब।
समय कीमती जब गँवाना नहीं है।
मधुर स्नेह से जिन्दगी को गुजारें।
कहीं शेष कोई बहाना नहीं है।
सहेंगे सभी कुछ कहा आपने था।
जिसे अब कभी भी भुलाना नहीं है।
बहे स्नेह सागर न संशय कहीं हो।
किसी को हमें आजमाना नहीं है।
करें प्रीति में जो नहीं व्यर्थ बातें।
मिलेगा कहीं वो दिवाना नहीं है।
दिखाएं नहीं छद्म आंसू किसी को।
स्वयं को फरेबी बनाना नहीं है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०८/११/२०२३