” दर्पण झूठ ना बोले “
” दर्पण झूठ ना बोले ”
( डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ” )
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राज की एक बात बताएं ?……अब हम 70 वर्ष के हो गए …..जन्म हमारा 1951 में हुआ था …..परन्तु लोग आज तक कहने में लगे हुए हैं कि हम ऐसे नहीं लगते बड़े ……..इन बातों की प्रतिक्रया मेरे नसों में दौड़ने लगी …… हमारा सीना वाकय में ५६ इंच का हो गया ! हम तो सोचने लगे कि हम अभी भी गगन के तारों को जमीन पर ला सकते हैं ! कुछ अलग दिखने की ख्वाइश से जवानिओं के पोशाक को पहनते चले गए ! कभी ७ किलो मीटर साइकिल चलाये …….कभी स्कूटर ….कभी बाइक ……कभी कार …..उम्र हमारी क्यूँ ना अंतिम पड़ाव पर हो ……हमारे सर क्यों ना झारखण्ड की रोड की तरह दिखने लगे ……टाँगें भले ही लड़खड़ायें ……मुँह में हमारी दाँतें क्यूँ ना ब्रेक डांस करें …..फिर भी ” दिल तो दिल ही है ……. हम तो सदा ही गुनगुनाते हैं “दिल तो बच्चा है जी”…….. पुरानी तस्वीर को निकलकर नयी तस्वीरों से हम तुलना भी नहीं करना चाहते ……… घर पर तो दर्पण हमें परिधानों में ही निरक्षण करते हैं ……….पर दिल्ली के प्रशांत विहार मॉल के ट्राइल रूम ने हमें एहसास करबा दिया कि हम वस्तुतः हैं क्या ?…….”ट्रायल रूम” के बड़े बड़े दर्पणों ने हमारा दिव्य रूप का साक्षात्कार करा दिया और जमीनी स्तर का अंदाजा हो गया !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
नयी दिल्ली