मुहब्बत में धोखा
विधाता छन्द,
1222 1222 1222 1222
गीत
कभी भी इस जमाने में किसी से इश्क़ मत करना।
मुहब्बत में कभी भी यार तुम इजहार मत करना।
मिलेंगे जख्म कुछ ऐसे कभी जो भर नहीं पायें।
मिलेगा दर्द कुछ ऐसा सदा रोना तुम्हें आये।
भरोसा बेवफाओं पे कभी ये यार मत करना।
मुहब्बत में कभी भी यार तुम इजहार मत करना।
जख्म का दर्द सह सहकर कहा अश्कों ने आंखों से
कभी तुम इश्क़ मत करना मुहब्बत की निगाहों से
किसी की याद में रोकर कभी गलती नहीं करना।
मुहब्बत में कभी भी यार तुम इजहार मत करना।
मिले बदनामियाँ इसमें लगे फिर दाग इज्जत पे।
ज़माने के सभी नाते हँसे तेरी मुहब्बत पे।
कभी भी हुस्न वालों पर नहीं विश्वास तुम करना।
मुहब्बत की पनाहों से कभी इजहार मत करना।
समझलो यार तुम बातें हकीकत ही बताई है।
सुधर जाओ अभी भी तुम इसी में ही भलाई है।
नहीं रोना पड़ेगा यार फिर अफ़सोस मत करना।
मुहब्बत की पनाहों से कभी इजहार मत करना।
■अभिनव मिश्र”अदम्य