दर्द जब इतने दिये हैं तो दवा भी देना
बहर—2122 1122 1122 22
काफिया—- ” आ” स्वर की बंदिश
रदीफ—- भी देना
साँस जब तुमने चुरा ली तो हवा भी देना।
दर्द जब इतने दिये हैं तो दवा भी देना।।
आँख में मुझको बसा तुमने उतारा दिल में,
आग जब तुमने लगाई तो बुझा भी देना।
इश्क में मुझको मिले ज़ख्म ज़माने से भी,
मर्तबा अब के हमें यार दुआ भी देना।
कत्ल कर तुमने किया मुझको यहाँ जिंदा अब,
अर्ज़ है जान मिरी दिल में बसा भी देना।
देख कर तिरछी निगाहों से फना ना करना,
तीर नज़रों का मिरे दिल पे चला भी देना।
यार जब रास वफा आए न तब तुम दिल से,
‘भारती’ को हो सके यार भुला भी देना।
-सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू, (हि.प्र.)