दर्द को मायूस करना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे प्यार की लौ के लिए
हसरतों को फूस करना चाहता हूँ।
हर घड़ी हरदम तुम्हें, केवल तुम्हें,
हाँ तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ।
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यूँ तमन्ना है तुम्हारे साथ की,
मैं बनूँ वीणा तुम्हारे हाथ की,
ख्वाब के लाचार खग को चार पर दे दो,
बेसुरे इस तार को झंकार भर दे दो।
मैं तुम्हारी नर्म नाजुक छुअन से,
प्रेमधुन महसूस करना चाहता हूँ।।
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ठेठ तन्हाई में इतना खप चुका हूँ।
जेठ जैसा माघ फागुन तप चुका हूँ।
कैद होकर प्रेम के पाबंद नगरों में।
रोज भीगा बारिशों में बंद कमरों में।
रोज सावन और भादों जी चुका अब
मौसमों को पूस करना चाहता हूँ।।
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प्यार की रुत दूर जाते देखता हूँ।
गमों को खुशियाँ मनाते देखता हूँ।
मैं तुम्हारा दर्द सारा माँगता हूँ।
मुस्कराने का सहारा माँगता हूँ।
मुस्कराकर दर्द के ही दौर में,
दर्द को मायूस करना चाहता हूँ।।
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आँधियाँ हैं दीप की परवाह है मुझको।
मैं पतंगा रोशनी की चाह है मुझको।
चाह है मैं रूप का किस्सा बनूँ।
मैं तुम्हारी धूप का हिस्सा बनूँ।
बना दिल को घर तुम्हारा , दर जिगर को
यह नज़र फानूस करना चाहता हूँ।।
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संजय नारायण