दर्द की भाषा
दर्द की भी अपनी एक भाषा होती है।
हर चोट की अपनी परिभाषा होती है।
आह गवाह है पीड़ा में नासूर को भी,
किसी के दवा-दुआ की आशा होती है।
-शशि “मंजुलाहृदय”
दर्द की भी अपनी एक भाषा होती है।
हर चोट की अपनी परिभाषा होती है।
आह गवाह है पीड़ा में नासूर को भी,
किसी के दवा-दुआ की आशा होती है।
-शशि “मंजुलाहृदय”