दर्द की इंतहा
आजकल आहों का असर खुदा पर भी नहीं होता,
इंसानों की तो बात ही छोड़ दो ।
सदाएं दे दे कर थक जाता है टूट जाता है जख्मी ,
तक हो जाता है ये मासूम सा ,नाजुक सा दिल ।
उसके दर्द ओ गम की इंतहा ही छोड़ दो ।
आजकल आहों का असर खुदा पर भी नहीं होता,
इंसानों की तो बात ही छोड़ दो ।
सदाएं दे दे कर थक जाता है टूट जाता है जख्मी ,
तक हो जाता है ये मासूम सा ,नाजुक सा दिल ।
उसके दर्द ओ गम की इंतहा ही छोड़ दो ।